ईश्वर को आती नहीं है नींद वह तो एक खूँख्वार कातिल की तरह भ्रमणकारी जागता ही रहता है दिन-रात जैसे चौबीस-सात का होता है बैंकिंग एक पंक्ति का नहीं होता है समूह-नाच और मैं नहीं समूह-नाच एक पंक्ति का मैं एक एक अकेले द्वीप का कवि
हिंदी समय में राजकुमार कुंभज की रचनाएँ