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कविता

मैं एक अकेले द्वीप का कवि

राजकुमार कुंभज


ईश्वर को आती नहीं है नींद
वह तो एक खूँख्वार कातिल की तरह भ्रमणकारी
जागता ही रहता है दिन-रात
जैसे चौबीस-सात का होता है बैंकिंग
एक पंक्ति का नहीं होता है समूह-नाच
और मैं नहीं समूह-नाच एक पंक्ति का
मैं एक एक अकेले द्वीप का कवि

 


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